चाहत का आसरा था, वो वक्त दूसरा था।
सब कुछ हराभरा था, वो वक्त दूसरा था।
फूलो की रोशनी थी, खूश्बु का था उजाला;
ख्वाबो का दायरा था, वो वक्त दूसरा था।
अरमां नहीं है कोई, ना कोई आरझू है;
दिल झख्म से हरा था, वो वक्त दूसरा था।
माफी भी तुमने मांगी तो माफ ना करेंगे;
शिकवा झरा-झरा था, वो वक्त दूसरा था।
ईकरार कर के तेरे चूमे थे होठ और फिर-
सिर गोद मे धरा था, वो वक्त दूसरा था।
तेरे बिना भी अव तो मैं जी रहा हूं, दिलबर!
तुज पे कभी मरा था, वो वक्त दूसरा था।
क्यूं छांव मांगते हो पानी पिलाओ, साहब!
जब पेड यह हरा था, वो वक्त दूसरा था।
- अल्पेश कलसरिया
alpesh_kalasariya@yahoo.com
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